जिसको देखकर चाहत से भर गया मन।
मुझे क्या पता उसका भी विचलित मन।।
अपनी आँख बन्द करके सोने का नाटक।
उसने भी नही टोका बदहाल उसका मन।।
आकर्षित होता जा रहा बिना कोशिश के।
प्रेरित कर रहा रूप-रंग है बहार-ए-चमन।।
मोहब्बत दोनो ओर सूरत-ए-हाल एक सा।
जाने किस बात पर 'उपदेश' हुई अनमन।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद