पंछी तिनका-तिनका चुन,
एक नीड़ बना ले।
अरमानों के पर निकले तो,
आशाओं के दीप जला ले।।
उनको याद रहे ना रहे,
तेरे ये सारे कृत्य कर्म।
तुझको है दायित्व निभाना,
दायित्व बोध का मर्म जगा ले ।।
अनासक्ति में आसक्ति तुम्हारी,
निष्काम कर्म का योग बने गी।
कर्त्तापन अभिमान त्याग कर,
स्वर्ग शिरोमणि द्वार सजा ले।।
भरम न कोई होने पाए,
सुफल सफलतम बीज मंत्र का।
निःस्वार्थ भाव हो फिर महको,
निर्लिप्त होय निज को अपना ले।।
भांति -भांति के रंग ले आओ,
दस दरवाजे विधि से सजाओ।
निर्मल मन केन्द्रित हो जाये,
मानस में एक चित्र बसा ले।।
रहने वाले मस्त रहे गें,
गम भी उनसे त्रस्त रहे गें।
खुशियों का अंबार लगे गा,
तूं थोड़ा सा धीर धरा ले।।
रन्ज किसी को ना करना है,
सब हैं ऊंचे यही कहना है।
ले लकुटी जीवन पथ पर तूं,
बढ़ चढ़ कर फिर दौड़ लगा ले।।
याद रहे एक दिन होना है,
सब कुछ छोड़ यहां जाना है।
सत्य सफल संग्रामी पथ में,
खुद को कर ले उनके हवाले।।
कृष्ण मुरारी पाण्डेय
रिसिया-बहराइच।