मैं हूँ शक्ति, मैं ही नारी,
फिर क्यों बाँधें बेड़ी भारी?
मेरे सपनों की उड़ान को,
क्यों रोकें ये दीवारें सारी?
मैं धरती, मैं ही आकाश,
मेरे भीतर हैं अनगिन सांस।
फिर क्यों मेरे अस्तित्व पर,
सवाल उठे हर दिन, हर बार?
न मैं कम हूँ, न मैं पीछे,
समय की धारा संग बहती।
अपने हिस्से का आकाश,
मैं भी छूने को हूँ कहती।
ना मैं मूर्ति, ना हूँ बंधन,
मैं भी चाहूँ अपना जीवन।
जो हक तुम्हारा, वो मेरा भी,
समानता ही हो आंदोलन।
पितृसत्ता की वो बेड़ियां,
अब टूटेंगी हर दरो-दीवार।
नारी का हर एक सवाल,
बनेगा एक नया संसार।
आओ मिलकर स्वर उठाएं,
नारी के अधिकार बचाएं।
हर बेटी का सपना सजाये ,
स्त्री विमर्श का दीप जलाये।
क्यों छीनो मुझसे मेरा नाम?
क्यों बांधो मुझे रिश्तों के जाल?
मैं भी इंसान हूँ, एक विचार,
क्यों सहूं मैं हर एक प्रहार?
चूल्हा-चौका मेरा हिस्सा क्यों ,
पर क्यों रोज यही किस्सा है?
मेरे सपनों की उड़ान कहाँ ?
तुमसे मेरी अलग पहचान कहाँ ?
मैं भी जी सकती हूँ खुले गगन में,
सपनों की बुनाई अपने मन में।
हर निर्णय मेरा अधिकार हो,
न किसी का दबाव, न उधार हो।
ना सिर्फ देह, ना सिर्फ सूरत,
मेरा भी मन है, मैं भी हूँ मूरत।
अपना वजूद मैं खुद लिखूंगी,
हर बेड़ी को अब मैं तोड़ दूंगी।
अब नहीं रहूंगी मौन कहीं- कभी,
मेरे सवाल का जवाब दो यहीं।
न्याय की वो मशाल जलाऊंगी,
स्त्री का अलग संसार सजाऊंगी।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







