कविता : नंगा....
इंसान नंगा
आता है
फिर नंगा ही
जाता है
तो फिर जिंदगी भर
कपड़े क्यों लगाता है ?
बगैर कपड़े में
फिर क्यों शर्माता है ?
ये न ऐरे न
गैरे को पता है
ये तो मुझे भी
समझ नहीं आता है
ये तो मुझे भी
समझ नहीं आता है .......