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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

गुमान न करना

गुमान न करना
उम्र के पड़ाव भी क्या खूब हैं
बढ़ती हुई उम्र हर गुमान तोड़ती जाती है
कद पर नाज़ किया तो कमर झुका दी
मान हुआ सुन्दरता पर तो झुर्रियाँ बना दी
ज़ुल्फ़ों की खूबसूरती को
बुढ़ापे की चाँदनी ने ढक दिया
परिवार पर गर्व किया तो
परिवार के भी आगे परिवार बन गए
और संबंध अब दूर के हो गए
अहम् किया धन का तो
उम्र के आख़िरी पड़ाव ने जता दिया
कि अब धन नहीं वक़्त चाहिए
वक़्त पर विश्वास किया
पर वक़्त तो कभी किसी का हुआ नहीं
यही है हर एक इंसान की कहानी
फिर भी वह अपने ‘मैं’ से दूर नहीं रह पाया..
-वन्दना सूद


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (8)

+

Vadigi.aruna said

सही कहा आपने बहुत खूब👌👌

वन्दना सूद replied

🙏🙏

सुप्रिया साहू said

Correct 💯, बहुत सुंदर रचना मैम 👌👌, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

वन्दना सूद replied

🙏🙏😊

पवन कुमार "क्षितिज" said

बहुत ही शानदार लिखा है वंदना जी...ज़िंदगी की सच्चाई इसके अलावा कुछ नहीं...👌🙏

वन्दना सूद replied

बिल्कुल सही कहा sir 🙏🙏

Shiv Charan Dass said

वाह कितने सरल सहज अंदाज में जीवन की वास्तविकता की सुंदर रचना ............ बहुत खूब

वन्दना सूद replied

शुक्रिया sir 🙏🙏

सुभाष कुमार यादव said

बहुत सुंदर।👌👌👌

वन्दना सूद replied

🙏🙏

रीना कुमारी प्रजापत said

Waah 👌 bahut sundar prastuti 🙏

वन्दना सूद replied

🙏🙏😊

श्रेयसी said

बिल्कुल सही कहा यही "मैं"तो विनाश कारण है। बहुत ख़ूब 🙏🙏

वन्दना सूद replied

🙏🙏जी बिल्कुल पर यही implement नहीं हो पाता हम सब से

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह... कितनी सच्चाई और गहराई समेटे हुए हैं ये शब्द! "बढ़ती हुई उम्र हर गुमान तोड़ती जाती है" — क्या तीखा और सधा हुआ सत्य है! रचना एक आईना है, जिसमें हर पाठक खुद को टटोल सकता है। ‘मैं’ से बाहर आ पाना ही सबसे बड़ा ज्ञान है — और आप उसे कविता में ढाल लायीं । सादर प्रणाम इस आत्मबोध से भरी रचना को 🙏🕊️

वन्दना सूद replied

शुक्रिया अशोक जी 🙏🙏

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