हमको अबकी, उनकी महफ़िल में तवज़ह ना मिली..
हम हैरां थे, उनकी बेरुखी की कोई वज़ह ना मिली..।
वो कोई कायदे से हमें, मात कर देते तो गिला ना था..
जुबां में तो हिकारतें थीं, मगर दिल से शह ना मिली..।
ज़िंदगी तो हर रोज़, मुखौटे बदलकर मिला करती है..
तभी तो अजनबी रही, कभी अपनों की तरह ना मिली..।
हर घड़ी हर मंज़र बड़ी, शिद्दत से बदला हुआ मिला..
जहां कभी पल भर बैठे थे, फिर वो जगह ना मिली..।
शब भर हम ख़्वाब में भी, महताब की तलाश में रहे..
सुबह तो मिली मगर आफताब वाली सुबह ना मिली..।