हृदय की वेदना,
अधरों की मौन पुकार सुन,
मंद हँसी मुख से,
नीरव कारुणिक चीत्कार सुन।
कितना रोती है वो,
मेरे भीतर के रचनाकार सुन।
अश्रुओं से आर्द्र आँचल,
अंदर के आर्तनाद के पार सुन,
बाह्य शांति से परे,
उसका आंतरिक हाहाकार सुन।
कितना रोती है वो,
मेरे भीतर के रचनाकार सुन।
वो करती विलाप भीतर,
विरहिणी हृदय का उद्गार सुन,
समकक्ष बैठी हृदय में,
उसके अंतस का दुश्वार सुन।
कितना रोती है वो,
मेरे भीतर के रचनाकार सुन।
उसके अश्रु मेरे शब्द,
विचार वेदना की गुहार सुन,
हमारी पीड़ाओं के,
अव्यक्त भावों का गुबार सुन।
कितना रोती है वो,
मेरे भीतर के रचनाकार सुन।
🖊️सुभाष कुमार यादव