हर रोज़ की तब्दीलियां, क्या–क्या बदल रहीं..
बहरूपिया बनी ख्वाहिशें, अपना चेहरा बदल रहीं..।
वो रू–ब–रू कुछ थे, बाद में कुछ और हो गए..
मेरी आरजू वही है, बस उनकी दुआ बदल रही..।
अब कोई खुद को संभाले भी, तो संभाले कैसे..
महफ़िल में आते ही हमारे, सब चर्चा बदल रही..।
अदालतें भी वही हैं, और मुंसिफ़ भी है काबिल..
फिर भी इंसान की हैसियतों से, सज़ा बदल रही..।
फ़ितरत में कैसे रखूं मैं अब, मिजाज़–ए– नफ़ासत
ये दुनिया बदल रही, दुनिया की हवा बदल रही..।
पवन कुमार "क्षितिज"