भोले थे।
सबको घर बना लिया।
छत बाँटी, रोटियाँ बाँटी,
छाया तक बाँट दी।
और जब
बारिश आई,
तो वही छत
सबसे पहले टपकी।
जिन्हें
आँखों में बसा लिया था,
उन्होंने ही कहा —
“ये तुम्हारी कल्पना थी।”
हमें लगा —
अब जीना किस काम का?
पर फिर सोचा —
शुक्र है,
उन्होंने ठुकराया।
अब कम से कम
भ्रम में तो नहीं हैं
अस्थायी साथ को
प्रेम समझने की भूल की थी,
अब सीखा है —
जो रुकते नहीं,
उनसे बाँध नहीं बनाया जाता।
सत्य यही है —
छूटना भी एक कृपा है।
वरना हम
उसी अस्थायी मौसम में
बरसों अटके रहते।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




