कापीराइट गीत
आज तुम्हारी महफिल में
एक शायर, बदनाम हुआ
टूटे, उस के ये, रिश्ते सारे
अच्छा खासा, काम हुआ
कितनी थी उम्मीदें तुमसे
कितने अरमां थे, दिल में
कितने प्यार से रक्खा था
तुझको मैंने अपने दिल में
बिखर, गए ये, सपने सारे
अब कैसा ये अंजाम हुआ
आज तुम्हारी...............
ताकत, थी, कहां, गैरों में
अपनों ने ही बेजार किया
टूट गए सब सपने उसके
ऐसा, मंजर, तैयार किया
देखा हमने, प्यार तुम्हारा
बहुत, बुरा, अंजाम हुआ
आज तुम्हारी ..............
यूं तोड़ के दिल जाने वाले
जा तुझको मैंने माफ किया
ये शिकवे गिले न रहें बाकी
जा, तेरा रस्ता, साफ किया
बचा, नहीं कुछ, कहने को
क्यूं दिल पे, इल्जाम लिया
आज तुम्हारी ................
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है