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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

उसको तो बस आना था

हमारी आशिक़ी का भी वो हाए क्या ज़माना था
फ़िज़ाएँ रंगीन लगती थी पतझड़ भी लगता सुहाना था

सूरज की तपिश हो या सड़क भरी हो बारिश के पानी से
ठिठुरती अंँधियारी रातों में भी उसको तो बस आना था

आते हीं शुरू हो जाती जमा अनेक चाय की प्याली
सबके साथ में शुरू रहता हमारा गाना बजाना था

मैं करती आख़िरी पेशकश अपनी पसंदीदा राग दरबारी कान्हड़ा से
मगर उसे तो मम्मी की फरमाइशों के साथ अंतहीन ग़ज़ल सुनाना था




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (8)

+

Shiv Charan Dass said

अच्छा सहज़ सुन्दर

Supriya sahu said

तो फिर आज कर ही दीजिए “अपनी पसंदीदा राग दरबारी कान्हड़ा” बहुत सुंदर रचना मैम 👌👌, आपको सादर प्रणाम🙏🙏।

श्रेयसी said

शुक्रिया शिव जी 🙏🙏

श्रेयसी said

सही कहा सुप्रिया जी आपने आपका बहुत-बहुत आभार 🙏🙏

Updesh Kumar Shakyawar said

फ़िज़ाएँ रंगीन लगती थी पतझड़ भी लगता सुहाना था। क्या बात हैं 🙏🙏

श्रेयसी said

बहुत-बहुत आभार उपदेश सर 🙏🙏

Lekhram Yadav said

बहुत सुन्दर रचना, आपको सादर नमस्कार

श्रेयसी said

बहुत-बहुत आभार लेखराम भैया सादर प्रणाम 🙏🙏

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