राम सभी के अपने-अपने,
सबके मन में बसते राम।
कहीं अयोध्या, कहीं वनवासी,
हर युग में हैं पूजे राम।
कोई देखे मर्यादा में,
कोई प्रेम का सागर माने।
कोई रघुकुल की रीति समझे,
कोई न्याय का दीपक जाने।
संग शबरी के बेर चखे,
संग सुग्रीव के मित्र बने।
रावण से युद्ध किया लेकिन,
लंका में भी पूजे गए।
कभी महलों में सिंहासन पर,
कभी कुटी में वास किए।
हर युग ने अपने राम गढ़े,
अपने भाव के अनुसार जिए।
कोई उन्हें आदर्श कहे,
कोई प्रेम का रूप बताए।
राम तो बस राम ही हैं,
हर हृदय में दीप जलाए।
राम किसी के आराध्य हैं,
राम किसी के जीवन मंत्र।
कहीं शक्ति, कहीं भक्ति हैं,
कहीं नीति के शुभ अनुबंध।
किसी के राम हैं राजमहल में,
किसी के वनवासी राम।
किसी ने हृदय में रखे उन्हें,
किसी के लिए वे सिर्फ़ नाम।
कोई उन्हें मर्यादा माने,
कोई करुणा का सागर।
कोई देखे धर्म-युद्ध में,
कोई शरणागत का घर।
राम अयोध्या, राम वनवासी,
राम शबरी के मीठे बेर।
राम गरीब की रोटी जैसे,
राम पुजारी के मंत्र-संग ।
राम से सबका नाता जुड़ा है,
राम में हर कोई समाया।
कभी तुलसी, कभी कबीर में,
हर मन ने अपने राम को पाया।
राम से है सबका अनमोल नाता,
दुःख में भी राम, सुख में भी राम।
भज लो प्यारे राम का नाम,
सबके हैं — अपने-अपने राम।
"राम सबके हैं… अपने-अपने राम।