नाप जमीं को आसमान तक
बो राही घनघोर कहां हे
शून्य गगन का छोर कहां हे
कहां सिमट कर बैठ गए जी
अभी रात हे भोर कहां हे
ढूंढ उजाला और कहां हे
काले से अंधियारे से
टूटे हुए सितारे से
मांग रहा क्या आश लिए
आखें बड़ी निराश लिए
जला मशाले कूद पड़ो तो
फिर अंधियारा और कहां हे
देख रहा हे तुझे जहां हे
कहदो सबसे भोर यहां हे