अर्जन कर करके,
कई दर्जन किया,
फिर अंत समय,
सब विसर्जन किया।
जीवन ही एक अवसर है,
बाकी सब नश्वर है,
सर्वव्याप्त वृष्टि का जीवन ही जलधर है।
यह अमृत-अविरल है ,
मृत्यु तो बस एक छल है,
जीवन तिमिर में,
एक प्रकाश-अंतराल है।
जो पा गया उसे,
बस वही अमर विशाल है।
मृत्यु भ्रम में वो रहता नहीं
लहरों में बहता नहीं।
वाचाल कुछ कहता नही,
और मौन चुप रहता नहीं।
जगा लो उसे,
और स्वयं की आहुति दो।
खुद को मृत्यु,
और उसे ही स्तुति दो।