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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

उपहारों का उधार

धरती ने दी थी साँसें— साँसें भी, और साथ भी,
पर मानव ने हर साथ को, बस साँस की तरह खर्च किया।

नदियाँ बोलीं— “मैं तेरे मन की दर्पण-सी हूँ”,
पर वह उन्हें काँच समझ कर तोड़ता चला गया।

आकाश ने छाया दी माँ की तरह—
लाड़-सा, आशीष-सा, बादलों के आँचल-सा।

पर मानव ने वही आँचल चीर दिया—
जैसे भविष्य की किताब से कल ही निकाल फेंका हो।

वृक्ष बोलते रहे— “हम खड़े हैं, बस तेरे खड़े रहने के लिए”,
पर उसने उन्हें काटा ऐसे,
जैसे कोई दुःख काटना चाहता हो…
पर दुःख तो वही खड़ा रहा।

समय ने पूछा— “अब रोते क्यों हो?”
मानव बोला— “मैंने माँगी थी रौशनी…
पर लौटा अंधेरा क्यों?”

प्रकृति हँस दी— हँसी भी, और हसीं भी,
क्योंकि उसका सौंदर्य तो शाश्वत था,
पर मानव की हँसी अब लौट कर
बस एक प्रतिध्वनि बन गई थी।

वह खड़ा है— अपने ही बनाए रेगिस्तान में,
जहाँ पछतावे की रेत
हर क़दम को डूबो देती है।

अब वह फुसफुसाता है—
“धरा! मुझे फिर से धरा दे वह कोमलता,
क्योंकि मैं टूटकर तुम्हारी माटी में
मिट्टी-सा मिल जाना चाहता हूँ…”

प्रकृति कहती है— “उपहारों का उधार,
चुकाना ही पड़ता है मानव…
मैंने दिया था जीवन,
और तुमने लौटाया विनाश—
अब इस अंतर का ब्याज तुम्हें ही भरना होगा…”




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (7)

+

सरिता पाठक said

अति सुन्दर रचना सचमुच प्रकृति ने जो उपहार हमें दिए हैँ, मानव उनकी कद्र नहीं कर सका, सही कहा आपने, सादर प्रणाम 🙏👌

फ़िज़ा said

अब इस अंतर का ब्याज तुम्हें ही भरना होगा sach kaha aapne behad lazwaab rachna 👌

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

वाह!! अतिसुंदर। प्रकृति की पुकार और सजा को बड़ी ही खूबसूरती से चित्रित किया है आपने। क्या बात है 👌👌🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

मानव, प्रकृति की दी हुई अनमोल उपहारों का अपने स्वार्थ के लिए उपयोग करता है पर इसके बदले प्रकृति के प्रति जरा भी कृतज्ञ नहीं होता। इसीलिए आज मानव समाज को प्रकृति के प्रकोप को झेलना पड़ता है। आपकी रचना, शाश्वत कल्याणकारी भावनाओं से ओत-प्रोत है । सादर प्रणाम 🙏🙏

जयश्री विलास जोधंळे said

सुंदर रचना

सुभाष कुमार यादव said

मानवीय क्रियाकलापों से प्रकृति को जो क्षति पहुंचाई जा रही उसका नुकसान हम सभी मनुष्यों को निश्चित ही भुगतान पड़ेगा। बहुत सुंदर एवं शिक्षाप्रद रचना सर जी।👌🙏

सुप्रिया साहू said

प्रकृति के उपहार को हम सजा नहीं पाए उनका आदर नहीं कर पाए, हम प्रकृति के उपहार को विनाश को ओर ले गए और इस विनाश का भुगतान हम सब कर रहे हैं, सच कहा आपने - मैंने दिया था जीवन,
और तुमने लौटाया विनाश....।।
बहुत सुंदर रचना सर 👌👌,आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

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