हम कैसे चले जायें तुम्हारी जगह उसकी महफ़िल में,
जब बुलाया उसने हमे नहीं तुम्हें है।
और चले भी गये तेरे कहने से हम तो होगा क्या?
जब उन निग़ाहों को फ़क़त इंतज़ार तुम्हारा है।
हम कैसे ले ले तुम्हारी जगह उसकी महफ़िल में,
जब चाहत उसे फ़क़त तुम्हारी है।
और मानो ले भी ली तुम्हारी जगह हमने तो होगा क्या?
जब तक महफ़िल चलेगी उसे तुम्हारी कमी
खलती रहेगी।
हम कैसे करें उसकी वो तारीफ़,
जिसे सुनना वो बस तुमसे चाहती है।
फिर भी कर देते हैं तारीफ़ तेरे कहने से पर होगा क्या?
जब उसे फ़क़त तुमसे ही तारीफ़ सुनने की लत लगी है।
ख़ैर गये थे उसकी महफ़िल में हम
और जगह ली भी थी तुम्हारी,
पर तुम्हें ना पाकर वो बड़ी उदास हो गई।
पूछा तो कुछ ना उसने तुम्हारे बारे में,
पर हम जानते हैं उसके मन में
बडी ही खलबली मच रही थी।
🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️