यत्र तत्र सर्वत्र
हे माँ शारदे
हे वीणा वादिनी
हे हंस वाहिनी
हे ज्ञान दायिनी
नमन स्वीकार करें,
वंदन स्वीकार करें,
मैं तुक्ष हूँ , अज्ञानी हूँ
जैसी हूँ वैसी ही, स्वीकार करें,
मेरे अंदर जो अज्ञान है,
मेरे अंदर जो तुक्षता है,
अपने आशीर्वाद से,
उस अज्ञान और तुक्षता को दूर करें,
मेरा नमन स्वीकार करें,
मेरा नमन स्वीकार करें।
[चित्रांशी सारस्वत]