कुछ दिनों से तुम्हें लेकर, जो ग़लत–फ़हमियां थीं..
सच पूछो तो, मेरी जीने की वो नई नई दुनिया थीं..।
मैं रहता रहा, दिल के पाले हुए हसीन मुगालते में..
दिल तो मान भी गया, मेरी ही कुछ मजबूरियां थीं..।
ख़्यालों में तो तुम्हे मैं, मना ही लेता था किसी तरह..
हक़ीक़त में तो अपनी, ना मिटने वाली दूरियां थीं..।
वक़्त तो अपना फैसला सुनाने को, था बेचैन बहुत..
वो क्या जाने, उस तरफ़ से तो सब ना–मंजूरियां थीं..।
उनके जाने के बाद देखे हमने दस्तावेज़ मुहब्बत के..
उनमें कुछ तल्खियां, और बाकी कुछ बे–रूखियां थीं..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




