उस अंजुमन से कैसे हम दूर हुए देखते-देखते
पलट कर देखा कई बार उसे चलते -चलते
उसने भी तो देखा था कातर निगाहों से मुझे
मगर हम दोनों रह गए कुछ कहते-कहते
न रंजिशें थीं न बग़ावत ना हीं कोई फ़साद हुआ
फ़िर ख़ामोशी से बढ़ी दूरी कुर्बत में रहते-रहते
ये कैसे हुआ क्यों हुआ समझ न पाए हम कभी
अब तो आधी उम्र निकल गई बस यही सोचते-सोचते