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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

उस अंजुमन से

उस अंजुमन से कैसे हम दूर हुए देखते-देखते
पलट कर देखा कई बार उसे चलते -चलते

उसने भी तो देखा था कातर निगाहों से मुझे
मगर हम दोनों रह गए कुछ कहते-कहते

न रंजिशें थीं न बग़ावत ना हीं कोई फ़साद हुआ
फ़िर ख़ामोशी से बढ़ी दूरी कुर्बत में रहते-रहते

ये कैसे हुआ क्यों हुआ समझ न पाए हम कभी
अब तो आधी उम्र निकल गई बस यही सोचते-सोचते




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (10)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

भावनाओं की तह में उतरती पंक्तियाँ... बिछड़ने की चुप्पी को इतनी खूबसूरती से लफ्ज़ दिए हैं कि दिल भी एक पल को ठहर जाए। बहुत ही मार्मिक और प्रभावशाली रचना!

Lekhram Yadav said

मानवीय भावनाओं की एक सुन्दर अभिव्यक्ती, बहुत खूबसूरत रचना, आपको सादर नमस्कार।

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

दूरियां बढ़ती जाए और हृदय लाचार हो, बेबस हो अंतर्मन की दरिया में बहती अनन्य प्रीत की लहरें हिलोरें मार रहीं हैं, वाह सुंदर रचना, बधाई!

श्रेयसी said

बहुत-बहुत आभार इतना अच्छा समझने के लिए इतनी अच्छी प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद शुक्रिया अशोक जी, लेखराम भैया और मनोज जी आप सभी को सादर प्रणाम 🙏🙏

सुभाष कुमार यादव said

अनुभवप्रसुत पीड़ा की यथार्थ अभिव्यक्ति।👌👌🙏

Shiv Charan Dass said

बहुत खूब. ..गनीमत है आधी उम्र निकली हैं. ..यहाँ तो तमाम उम्र ही निकल गई

श्रेयसी said

बिल्कुल सुभाष जी यथार्थ न हो तो भावार्थ फिजूल है बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏🙏

श्रेयसी said

धन्यवाद शिव जी ज़िन्दगी का मजा भी इसी में है लेकिन बहुत-बहुत आभार 🙏🙏

Nand Kishor said

सुन्दर अभिव्यक्ती

Supriya sahu said

बहुत सुंदर रचना मैम 👌👌, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

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