हमारी मातृभूमि और माँ हमारे लिए स्वर्ग से भी बढ़कर प्यारी हैं..!
इसकी मिट्टी में खेलें, इसी में खुदें,
सावन की घड़ी में बूँदों की बौछार से भीगी धरती की खुशबू—
वो मिट्टी की सौंधी महक, चंदन से भी प्यारी है..!
यह मेरी पुण्यभूमि, मेरी स्वर्ग-सी भूमि,
जहाँ झरने झरते हैं, पर मुझे उनका शोर नहीं,
पहाड़ियों में चहकती चिड़ियों की सादगी ही प्यारी है..!
यह मेरी जन्मभूमि, मेरी मातृभूमि,
जहाँ गंगा, यमुना और त्रिवेणी संगम बहता है।
अब शहरों की चकाचौंध में मन नहीं लगता,
मुझे तो गाँव की गलियाँ और खेतों की हरियाली प्यारी है..!
मातृभूमि की सेवा में, देश की रक्षा में
सीना तान कर जो वीर घर से दूर चले जाते हैं,
उन्हें अपनी जान से भी ज़्यादा मातृभूमि प्यारी है..!
जो मिट्टी से जुड़कर बंजर ज़मीं में हरियाली लाता है,
तपती धूप में जलता है, खुद भूखा रहकर सबका पेट भरता है—
इतनी मेहनत के बाद भी कर्ज़ में डूबा रहता है,
फिर भी हँसकर कहता है—"भगवान की जैसी मर्ज़ी!"
उसकी आँखों में दर्द है, पर चेहरे पर हँसी प्यारी है..!
___संदीप पारीक
हनुमानगढ़


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







