खग विटप की व्यथा समझो
बे जुबानी कथा समझो
आसुओं का मोन समझो
घर से अपने जो बिछड़ते
उनके मन की पीर समझो
रो रही हैं सब दिशाएं
रो रही चलती हवाएं
नद नदी सागर की धारा
नभ,मही साम्राज्य सारा
रो रहा हे भय से व्याकुल
उस विपिन की कथा समझो
खग बिटप की व्यथा समझो
बना लो ऊंची इमारत
कांच के तुम घर बनालो
चमचमाते शहर में तुम
गांव का आंगन बचादो
बेजुबानों की, सुनो तो
इनका घर जंगल न काटो
खग विटप की व्यथा समझो
बेजुबानी कथा समझो
इनका घर जंगल न काटो
साक्षी लोधी