तुम्हारे सामने मेरी मर्जी कहाँ चलती।
हवा सी आती उँगली पकड़ ले जाती।।
झील की सतह पर वाष्प जैसी हूँ मैं।
बादल के साथ खुद अकड़ ले जाती।।
नसीब मे घूमना-फिरना आदत बना।
पाँव की जरूरत नही रगड़ ले जाती।।
कड़कती जब भी कभी आसमान में।
धरती के सीने में ये झगड़ ले जाती।।
जुदाई का मतलब पता नही 'उपदेश'।
वेग में जो भी प़डा उसे बाढ़ ले जाती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद