रिश्ते जब किनारा छोड़ दें,
हम भी क्यों सहारा ढूँढें?
छालों को सिला है चुपचाप,
अब किससे इशारा ढूँढें?
जिनको सौंपा था वजूद अपना,
वो ही क्यों दुश्वारा ढूँढें?
कश्ती टूट गई अंदर ही,
बाहर क्यों किनारा ढूँढें?
ख़ुद ही दर्द की चादर ओढ़ी,
क्यूँ अब कोई प्यारा ढूँढें?
जिसने आँखों में राख भरी,
उसमें फिर सितारा ढूँढें?
धड़कन को भी बोझ लगे अब,
दिल में कौन सहारा ढूँढें?
जिसने साँसों से साथ छीन लिया,
उसमें फिर दोबारा ढूँढें?
अब रिश्तों की भी भीड़ लगे,
हम क्यों अपना बंजारा ढूँढें?
रिश्ते जब किनारा छोड़ दें,
हम भी क्यों सहारा ढूँढें?
“शारदा” अब तन्हा चलना है,
किस-किस को दुबारा ढूँढें?