याद आने लगे हैं सब भूले हुए तराने फिर से
बचपन के भले दिन और यार पुराने फिर से
जिस गांव में जन्मे वह बन गया शहर है बड़ा
टूटी हुई हैं गलियां सड़कों के बहाने फिर से
बारिश के तालाब तो मछली के बाजार हैं ये
जायेगा कहाँ बच्चा उसमे क्या नहाने फिर से
वो दास खुला स्कूल वो टाट की हैं पट्टी गुम
आएगा नहीं मुंशी तख्ती तो लिखाने फिर से
जो खेल वहां होता वो जीवन का संदेशा था
घुल मिल के रहो सब ढूंढो तो बहाने फिर से II