🌸 (1) शृंगार रस छंद) 🌸
फागुन आया रंग लिए, गोकुल सारा झूमें,
श्याम रंग में भीग चलीं, गोपियाँ पनघट छूमें।
रंग गुलाल उड़ाय रहे, मधुर बंसी तान,
राधा संग मोहन नाचें, वृंदावन रसखान।
🌸 (2) दोहा छंद) 🌸
फाल्गुन में होली रची, गोकुल गाये गीत,
श्याम बिना जग सुना लगे, मन में उठे प्रीत।
🌸 (3) गीतिका छंद) 🌸
गोपिन संग श्याम नटवर, खेलें रस की होली,
रंग-गुलाल उड़ाय रहे, बंसी साज अनोखी।
नैनों में चितचोर बसे, मनवा मोहे मोहन,
प्रीत लुटाए कान्हा रस, रसिया प्रेम विलक्षण।
🌸 (4) अल्हड़ छंद) 🌸
राधा कहे – श्याम मोरे, रंग डारो पीत,
तेरी रंगत बिना सजन, जिये न ये मनमीत।
मोहन बोले – आओ राधा, संग खेलें खेल,
आज फाल्गुन रास रचाएँ, छोड़ें हर संदेह।
🌸 (5) कवित्त छंद) 🌸
गोपिन संग फागुन रंग में, नाचे नटवर नागर,
रंग बरसाए प्रेम सुधा सा, कान्हा मन के आगर।
भूल गईं वे लोक-लाज, प्रियतम के रंग रंगी,
कान्हा संग रस खेल चलीं, सखियाँ प्रेम पगी।
🌸 (6) चौपाई छंद) 🌸
गोपिन संग जब श्याम नचाए, वृंदावन रस छाए,
फागुन की ये प्रेम घटा में, धरती भी लहराए।
नाचे मोहन, बाजे बंसी, राधा संग मन भीगा,
होली की इस रास मधुर में, हर जीव का मन रीझा।
🌿 राधे-कृष्ण! 🌿