उधव इतना जाकर कहना
वह भूले बिसरे हम सब को
चित्त में थोड़ी धरना.
उधव इतना जाकर कहना
क्या ना जाने मेरे हीये को.
प्रीति बस्यो बस उनहिन प्रिय को
जोग की बाते मोहि न सुनना
मोको तो बस प्रीति में रंगना
कहलो तुमको जो कुछ कहना
पर मुझको अब एक न सुनना
बस तुम उनसे जाकर कहना
झूठा था क्या रास में रंगना
आसु से मेरा भर गए अंगना
उधव विनय मेरी तुम सुनना
उनसे जाकर बस तुम कहना
उनसे इतना बस तुम कहना
ज्ञान की पीठ लादी तुम्हें भेजे
अब तक एक भी ख़त नहीं भेजे
क्या ओ इतने निठुर भये है
बस ज्ञानिन के ही ओ भये है
प्रेम रूप में मै तो थी भेजी
फ़िर कैसे ओ योगी भये है
जाकर बस तुम कहना
रे उधव विनती मेरी कहना
प्रीतम की सुधि तुम लाना
रे उधव मोहन से तुम कहना
धरे कलेवर राधा उनकी
जिस्पे तुमने श्रमजल पोछा
तुम तो गये वाकी सुधि बिसराये
वस्त्र भी ओ तो बदल ना पाये
रही-रही तेरी टेर लगाऐ
मैला कलेवर हदय लगाय
उसने और कछू ना पहना
रे उधव श्याम से जाके कहना
ज्ञान की बात वो मोसे बताये
पर इतना तो समझ ना पाये
मेरे हिय में प्रेम समाए
कर्म तो मोसे कछु नहीं आये
फिर काहे मोहि जोग सिखाए
ज्ञान कर्म और इच्छा वही है
मेरे एक सीध में बसे है
फिर मोहि और नहीं कुछ लेना
बस इतना जाकर कहना
रे उधव ज्ञान उन्ही से लेना
जिनको तू निराकार बताए
जो सम्पूर्ण चराचर खाये
विश्वरूप में वही समाये
जिनका तू मोहि भेद बताये
मैने है छाछ पे नाच नचाये
ब्रज गलियों में खूब नचाए
तू मोहि ज्ञान का पाठ पढ़ाये
देख ये जड़ता हंसी मोको आये
अपने ज्ञान में तू इठलाये
मोहन ने तुमको भरमाये
मालुम पड़त मोहि जियरा मे
उधव तेरी समझ ना आये
पढन प्रेम के काजे तुझको
उनने या ब्रज में है पठाये
ज्ञान जोग तुम सब तजि जाना
रे उधव बस इतना ही कहना
ब्रज की इन कुंजर गलियां में
राधा संग मोहन रहना
ज्ञान जोग कछु हम न जानत
बस प्रेम रूप हो रहना
कि उधव बस तुम जाकर कहना
उन्हें बस इतना ही कहना
रे उधव ब्रज में आते रहना
----तेज प्रकाश पांडे
[सतना मध्य प्रदेश]