प्रशंसा के सुमन
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
दूसरों को देखना हो प्रसन्न, तो प्रशंसा के सुमन बिखेरो,
अपने मन में शांति की चाह हो, तो मौन का आंचल घेरो।
चाहो यदि जीवन में सहजता, तो बनो सरल स्वभाव के,
यह सब तभी संभव होगा, जब प्रेम हो खुद से भाव के।
जब प्यार करोगे खुद से तुम, तो औरों को भी सराहोगे,
अंतरमन की नीरवता में, शांति का सागर पाओगे।
सरलता ही जीवन का गहना, यह तुम्हें सहज बनाएगी,
खुशी और संतोष की धारा, तुम्हारे भीतर ही बहेगी।
इसलिए सीखो पहले प्यार करना, अपने ही अंतरतम से,
फिर देखना ये जग सुंदर लगेगा, हर रिश्ता होगा रसमय से।
प्रशंसा के दो बोल अमृत हैं, मौन है शक्ति अपार,
सहजता ही जीवन की नौका, ले जाएगी भव से पार।
खुद से प्रेम की राह पर चलकर, पाओगे ये सब सहज ही,
दूसरों को खुशी देना तब, लगेगा कितना सहज ही।
तो आओ करें ये प्रण आज, करें प्यार खुद से पहले,
फिर जीवन की हर राह होगी, खुशियों के ही मेले।