ज़ख्म ओढ़े बैठा आवाज के खातिर।
कब तक सोती रहोगी हो खुशगवार।।
एक वक्त वो भी हुआ करता अपना।
जब याद करके भी आता था करार।।
अब तो चाहत बढ़ गई तकनिकी से।
जब चाहो वीडियो कॉल बेहतर द्वार।।
कुछ अपनी कहो कुछ मेरी सुनो तुम।
खत्म करो 'उपदेश' का और इंतजार।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद