उनके हृदय की गहराई नापना कौन चाहे।
उदासी पर दीमक लगी छुड़ाना कौन चाहे।।
जर्जर होती जा रही आत्मा अन्दर-अन्दर।
फिर रंग बिरंगी मुस्कान भुलाना कौन चाहे।।
उनके लबों की कली अब तक नही खिली।
सतरंगी मिजाज उनके छुपाना कौन चाहे।।
वक्त ने घाव किस किसके जीवन में नही दिए।
ज़माने के अनगिनत खंजर गिनना कौन चाहे।।
अवशेष आशाओं के 'उपदेश' जज्बाती हुए।
वक्त की नजाकत पर ध्यान रखना कौन चाहे।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद