ये मेरे दिल की आरज़ूएं, और ये ज़माने की पाबंदियां..
ये बे–मुरव्वत तुफां, और नाज़ुक डाली पे आशियां..।
मुहब्बत में कोई कायदा, कभी काम आया ही नहीं..
समंदर से खफ़ा भी हैं, उस पर फना भी हैं कश्तियां..।
ज़िंदगी में एक मकाँ भी, बनता है बहुत अरमानों से..
फिर कैसे कुछ लोगों ने, यूं आज उजाड़ी हैं बस्तियां..।
ज़िंदगी तेरे हर कर्ज़ का, ब्याज़ भी चुकाया है हमने..
अब कुछ सांसों का हिसाब, रह गया तेरे मेरे दरमियां..।
वो रात भर तो सुनते रहे, मेरे दर्द–ए–दिल की दास्तां..
फिर ये कहके चल दिए, अब छोड़िए भी ये नादानियां..।
पवन कुमार "क्षितिज"