उड़ के आएं हैं परिंदे इन्हें आराम की है चाहत
मुड़ के आएं हैं जो रिंदे इन्हें जाम की है चाहत
ना घर में चैन मिलता है ना बाहर किसी जगह
दिल को खाते हैँ दरिंदे इन्हें शाम की है चाहत
साकी सुराही से बना शीशा ओ जाम जल्द से
बदनाम हो जाते हैं बन्दे इन्हें नाम की है चाहत
होश में आते नहीं अब जब तलक मय ना मिले
सब रहेंगे अब गूंगे अंधे इन्हें बेदाम की है चाहत
कुछ नसीहत काम आतीं ही नहीं है इनके यार
कौन लेगा ये इनसे पंगे इन्हें खान की है चाहत
दास देखा दर्द दरो दीवार दुखती घर में रग रग
भूखे सोते बीवी बच्चे न इन्हें काम की है चाहत II