हमने सोचा ना था कभी कि कोई ऐसा भी नज़ारा होगा,
मुझ पर हमदर्दी का यूं झूठा सहारा होगा,
मेरे गम पर गमगीन होने वाले ऐ मोहसिन,
ज़रा गौर से देख मेरे ज़ख्मों को उसमें एक नाम तुम्हारा भी होगा
#कमलकांत घिरी ✍️
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मुझ पर हमदर्दी का यूं झूठा सहारा होगा,
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ज़रा गौर से देख मेरे ज़ख्मों को उसमें एक नाम तुम्हारा भी होगा
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