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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

तुम्हें बारिश बड़ा याद करती है

लौट आओ ; तुम्हें बारिश बड़ा याद करती है,
अब बरसती भी नहीं है बस तुम्हारा
इंतज़ार करती है।

जब वो बरसती थी तुम आंगन में
धूम मचा देती थी,
और तुम्हारी पायल की छन छनन उसे
जोश में ला देती थी।

लौट आओ ; तुम्हें बारिश बड़ा याद करती है,
जब से तुम गई तभी से ये भी
थमी - थमी रहती है।

ये बारिश की बूॅंदें ढूॅंढती है तुम्हें और तुम्हारी
मखमली हथेलियों को,
तुम्हारे उन गुलाबी सुर्ख गालों और शबनमी
होंठों को।

लौट आओ ; तुम्हें बारिश बड़ा याद करती है,
उदासी लिए ख़ामोशी से बस तुम्हारी राह
तकती है।

🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️










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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (8)

+

शिवचरण दास said

वाह वाह. ..अभी मानसून आया कहाँ है

रीना कुमारी प्रजापत replied

हमारे यहां तो चल रहा है... शुक्रिया आपका और फिर ये रचना on demand है.. ये टाइटल हमे किसी से मिला कल रात को तो उसी वक्त इसे लिखा गया है और तब बारिश थी ही हमारे यहां...

सुप्रिया साहू said

बहुत खुशसूरत रचना दीदू 👌👌, अगर आप बारिश को थोड़ा यहां भी भेज दें तो हम भी भीग ले थोड़ा सा बारिश में🌧️, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

रीना कुमारी प्रजापत replied

Bheja to tha abhi tak nhi aai kya? Aa jayegi sabra ka fal mitha hota hai 😀🙏shukriya

वन्दना सूद said

वाह बहुत लाजवाब रचना रीना जी 👌👌👏👏👍

रीना कुमारी प्रजापत replied

Bahut bahut shukriya apka 🙏

कमलकांत घिरी said

Bahut sundar rachna didi ji lajwab, lekin barish ko hamare pas na aane dijiye yaad kar rahi to vaha tak thik hai agar gale lag jayegi to hame bhi jukam ho jayega to barish ko dur hi rahne dijiye😂

रीना कुमारी प्रजापत replied

Aisa nhi hoga fir kya ye jukham mein jo taqleef hoti hai ye bas hum hi sahenge kya...😂😂 Hume to sirf barish ko bhejna aata hai rokna nahi, ab kya kare kaise roke? Ab wo apse itna pyar karti hai ki zid par adi hai apse gale milne ke liye... Ab uska dil to nhi tod sakte na hum.. par ha ye kah denge ki humare bhai ke gale to milna par itna bhi mat mil Lena ki bhai ko jukham ho jaye.. 😀😀😀🙏🙏shukriya itni khubsurat samiksha ke liye

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

बारिश की बूंदें प्रियतमा की यादों को और बढ़ा देती हैं।पायल, गुलाबी सुर्ख गाल,शबनमी होंठ श्रृंगारिक उच्चारण, प्रियतम की हृदय की तड़पन को खूबसूरत चित्रांकन किया है आपने। वाह क्या बात है।👌🙏🙏

रीना कुमारी प्रजापत replied

बहुत बहुत शुक्रिया आपका 🙏

शिवचरण दास said

पुनश्च : लीजिये समीक्षार्थ मानसून हमारे यहाँ भी आ गया

रीना कुमारी प्रजापत replied

Ji humne hi bheja hai use😀

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! क्या बात है!, ऐसा प्रतीत होता है नायिका वर्षा ऋतू के आने पर अपने आप को बता रही हो कि जैसे पहले बारिश के मौसम में जैसे पहले धूम मचती थी उस धूम को बारिश याद कर रही है, कहाँ खो गयी हो लौट आओ, ना जाने क्यों ऐसा लग रहा है, आदरणीय रीना Mam, जी खुद को एहसास दिला रही हैं कि लौट आओ पहले की तरह रीना Mam, बनकर बारिश भी पहले वाली रीना जी को याद करती है

आदरणीय Mam, को सादर प्रणाम, बहुत खूब लिखा है आपने, होसकता है भावार्थ समझने में मुझसे भूल हुयी हो, लेकिन बहुत शानदार रचना हमेशा की तरह

रीना कुमारी प्रजापत replied

😀😀😀😀 इतनी खूबसूरत से भी खूबसूरत समीक्षा के लिए दिल की अनंत गहराइयों से बहुत बहुत आभार आपका 🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut khoobsoorat Rachna Mam.
"Barsa"tile Writing style pasand aayi

रीना कुमारी प्रजापत replied

Shukriya rachna or style ko like karne ke liye 😊

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