खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया
बात दूर तलक जा पहुंची
टुकड़ो में इश्तेहार गया
खबर को खबर लगी खबरी से
बढ़ा चढ़ा के बात कही
बातों के रग में सच बहा झूम के
दिन को उसने रात कही
आँखे मानो खुल गयीं अचानक
उससे उसका किरदार गया
खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया
शोर हुआ हो गया सवेरा
काली रातों के साये में
भेद जैसे कर पाया न कोई
अपने और पराये में
रिश्ता काली रातों में गुम था
कोई तो उसे संभार गया
खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया
तन्हाई के आगे बेबस
किस्मत से दो - दो हाथ
मुफलिसी के दौर में भला
हो ही क्यों कोई मेरे साथ
रिश्ते टूटे... सब थे झूठे
हाथ से निज व्यापार गया
खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया
मन में मन से मौन लड़ाई
अक़्सर होती रहती है
बोझ कई झूठेपन का
सांसें हरदम सहतीं हैं
भला था उस सोयेपन में
कोई हकीकत का जल फुहार गया
खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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