मधुशाला जाना बहुत हुआ,
अब रहते हैं काव्यशाला में !!
ना पीने-पिलाने का खर्चा,
हम रहते हैं अपनी मस्ती में !!
यहाँ साक़ी वही..पैमाना वही,
छक के पियो शब्दों का जाम !!
ये खुली ही रहती है यारो,
दिन-सुबह-रात-सफ़ीने में !!
बचपन में कोई ले जाता,
टाइम मशीन में बैठाकर !!
कोई सठसठिया भी यहाँ,
सबको जवान कर जाता है !
पियो शेर और रहो शेर,
संदेश मिले हर शायरी में !!
यहाँ छोटा-बड़ा कोई है ही नहीं,
पाठक हैं सभी और श्रोता सभी !!
सब सुनते हैं इक दूसरे को,
जीने की आस जगाते हैं !!
लहरों का हैं आनन्द अलग,
सब हैं सवार इक कश्ती में !!
----वेदव्यास मिश्र
सर्वाधिकार अधीन है