मैं मजदूर हूँ, निर्माण करना मेरा काम है,
तुम सो जाओ चैन से मुझे कहाँ आराम है।
रोज नहाता पसीने से; यही मेरा इतिहास,
सुकूँ कब नसीब मुझे, मेरे लिए ये हराम है।
सतत गतिमान न थका, न कभी थकूंगा,
मरने पर ही मिल सकता मुझे विश्राम है।
नष्ट किया नहीं कभी, करूँगा पुनर्निर्माण,
इस काम के लिए... कब लिया विराम है।
🖊️सुभाष कुमार यादव