हर कोई हर किसी से, अलहदा हुआ जाता है..
समंदर की मानिंद खारा, मयकदा हुआ जाता है..।
समेटने का वक्त नहीं, अब की तूफ़ाँ सर पर है..
ये ज़मीं और आसमां भी, गुमशुदा हुआ जाता है..।
किसी के हाथ में नहीं कि, बात जो हुई लौटा ले..
कुछ मसला नहीं , बात का मुद्द'आ हुआ जाता है..।
मेरे आंसुओं को देख , उसने आंखे तो मली थी..
मगर दिल तो झूठ ही, ग़म-ज़दा हुआ जाता है..।
शौंक शौंक में गुदवा लिया, सीने पर नाम उनका..
अब हर दर्द उनके नाम से, इब्तिदा हुआ जाता है..