मोहब्बत करके सजा पाई फरेबी मौज का साया।
लगाकर दोष बिछड़ने में उसने भला क्या पाया।।
कशमकश जिंदगी करके सरलता से छला दामन।
बदनसीबी अश्क पीती गया सम्मान क्या पाया।।
बेवजह दुश्मनी पाली अधम मन चोट से घायल।
बेबसी से पीड़ित मन खोकर तुझको क्या पाया।।
कहाँ जाए करवटें बदलने कैसे छुपाएं दर्द अपने।
दूरियाँ बढ़ाने में लकीरें उसकी रिश्ते ने क्या पाया।।
बहारें रंग लाएगी मौसम ने उम्मीद जगाई 'उपदेश'।
उम्र दिल की बढ़ गई ख्वाब जिंदा रहे क्या पाया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद