वो आंखे रौशन थी, कि वो मंज़र थे धुले हुए..
नन्हें पंछी के पंख थे, आसमां तक खुले हुए..।
हवाएं कुछ कहती हुई, गुजरी हैं गुलों से अभी..
आंखों में रात के सपने, अभी तक हैं घुले हुए..।
यकबयक ये मौसम, कैसे कुछ बदल सा गया..
वो अफ़्साने कसमसाए, जो बरसों से थे भुले हुए..।
मेरी आरजूओं की नदी, खामोशी से बहती रही..
पत्थरों के दरिया में, नाज़ुक ख़्वाब बुलबुले हुए..।
इन्सान की कीमत के, हर तरफ़ इश्तिहार लगे हैं..
किश्तों पर बिकने को बैठे है, धर्मकांटे पे तुले हुए..।
पवन कुमार "क्षितिज"


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







