मन में तूफ़ान उठ रहे हैं कई,
अश्क रोके नहीं रुकते,
रास्ते नज़र नहीं आते।
रातें आंखों में कट जाया करती हैं कई
बस यही सोचने में कि ये तूफ़ान थमेंगे कैसे?
बड़े तन्हा है हम
इन तूफ़ानों को अकेले कैसे सहे,
किसी से कह भी तो नहीं सकते,
कौन सुने मेरी ये दास्तां?
सुने भी तो शायद गलत, मुझे ही समझे।
क्या दर्द सहते रहना ही ज़िंदगी है,
कोई तो मुझे बताए
कभी तो मेरी ज़िंदगी में भी खुशियों के दो पल आ जाए।
मन में तूफ़ान उठ रहे हैं कई,
अश्क रोके नहीं रुकते,
रास्ते नज़र नहीं आते
लगता है तूफ़ानों का मुझसे कोई बैर है,
हर वक्त मेरी ज़िंदगी में उथल-पुथल मचाए रखते हैं।
एक तूफ़ान ख़त्म होता नहीं दूसरा आ जाता है,
तूफ़ान पर तूफ़ान सहता है ये मेरा छोटा सा दिल,
कहीं टूटकर बिखर ना जाए ये मेरा नन्हा दिल।
जागती आँखें सपने देखती हूॅं,
तूफ़ानों को हटाने की कोशिश करती हूॅं,
थम जाए ये तूफ़ान बस यही आस लिए जीती हूॅं।
मन में तूफ़ान उठ रहे हैं कई,
अश्क रोके नहीं रुकते,
रास्ते नज़र नहीं आते।
~ रीना कुमारी प्रजापत