तुम्हारी हथेलियाँ गर्म मेरी उंगलियाँ ठंडी।
पकड़ कर चली जब सीधी लगी पगडंडी।।
कोई आते देखकर झटक देती मेरा हाथ।
याद आती तब तुम्हारी आदत रहीं घमंडी।।
उम्मीदी आँखों से सड़क किनारे इंतजार।
किसका करती बताने में लजाती लाजवंती।।
तुम्हारी शिकायत मेरे चश्मे के छोटे फ्रेम से।
उतार कर दोनों लेंस पर लिख देती एलडी।।
इतना लिखकर एक बेल की तरह 'उपदेश'।
झुक जाता था तेरा सिर कंधा बाये पकडी।।
कन्नी उँगली से इशारा कान के नीचे खुजली।
मोटर-साइकिल खड़ी कर देने की होती घड़ी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद