कलियुग का यही है खेल तमाशा
कलियुग का यही है खेल तमाशा
परमात्मा एक,यही सब धर्मों का कहना
फिर भी मनुष्य ने धर्मों को बाँटा
राष्ट्र एक,सनातन एक है
सनातन का सही अर्थ न जाना
फिर मनुष्य ने सनातन(जिसका न आदि है न अन्त)को बाँटा
कलियुग का यही है खेल तमाशा ..
ग़रीब का क्या है क़सूर ,उसे सत्ता ने लूटा
ऊँच-नीच के भेद-भाव में ऐसा भटकाया
कि मुफ़्त पाने की आदत सीखा दी
कभी न उनका भाग्य चमकाया
वास्तव में केवल उनको अपना वोट बैंक बनाया
न सत्य ,न संतोष बचा ,न रही शीलता वचनों में
धनवान और धनवान बना,ग़रीब सदा ही ग़रीब रहा
कलियुग का यही है खेल तमाशा ..
क्या खूब कहा किसी ने
पूछो सबसे जाकर! है हिम्मत तुममें
तो सूरज एक है ,चन्दा एक है
बाँट सको तो बाँटो उनको
पर्वतों को बाँटो ,गंगा की पावन धारा को बाँटों
शमशान,कब्र की मिट्टी को बाँटों जो एक धरा की मिट्टी है
नहीं है जवाब इन बातों के ,पर सवाल हज़ारों मन में हैं
उठते हैं सैलाब दिलों में ,जो बुझाए नहीं अब जाते हैं
कलियुग का हाल न पूछो,अभी कितने खेल तमाशे बाक़ी हैं ..
वन्दना सूद