भाषणों में देते हैं,
देशभक्ति का पाठ,
लेकिन कर्मों में दिखता ।
है सिर्फ स्वार्थ,
जनता को करते ।
हैं गुमराह,
अपनी जेब भरने में।
लगे रहते हैं ,
रात-दिन।
लोकतंत्र का नाम लेकर,
करते हैं अत्याचार।
दमन और छल,
जनता का ।
खून चूसते हैं,
बेखौफ।
अपने लिए ऐ!"विख्यात",
बनाते हैं महल।