कापीराइट गजल
आया है, जब से तन पर, मौसम शबाब का
अब खिलने लगा है चेहरा, फिर से जनाब का
एक बार, जरा रूख से, हटा दो यह नकाब
एक बार जरा सा देखूं, मैं चेहरा जनाब का
छलक रही है आंखों में, ये मस्ती शराब की
उतर रहा है नया रंग, जैसे इन में गुलाब सा
गुलाब की पंखुङी से, खिलते हुए यह होंठ
शहद सा घुला हुआ है यूं इन में शबाब का
यह गदराया हुआ बदन, ये मस्ती भरी अदाएं
छलक जाए न कहीं पे ये पैमाना शराब का
खुशियों की बारिश, ये महफिल का तकाजा
उसपे छाया तेरा जादू क्या कहना जनाब का
ये दौलत ये शौहरत, हों मुबारक तुम्हें यादव
ये हाल पूछें तो कैसे पूछें, ऐसे में जनाब का
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना)
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