क्या आज भी पूरी नहीं होगी ख़्वाहिश मेरी,
क्या आज फिर अधूरी रह जाएगी ख़्वाहिश मेरी।
क्या आज भी नहीं मिलेगा ज़िंदगी को मुक़ाम,
क्या आज फिर दर्द देगी मुझे चाहत मेरी।
क्या आज भी नहीं निकलेगा आसमाॅं में चाॅंद,
क्या आज फिर तन्हा रहेगी रात मेरी।
क्या आज भी रुसवाई ही लगेगी हाथ मेरे,
क्या आज फिर तड़पेगी रूह मेरी।
क्या आज भी नहीं करेगा वो इज़हार,
क्या आज फिर जलेगी तमन्ना मेरी।
🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️