तेरी तलाश में मैंने खुद को खो दिया है,
कहा खो गया तू,क्यों मुझसे जुदा हो गया तू ।
तुझमें खुद को पाने की कोशिश में लगी हूॅं मैं,
तुझमें खुद को पाना अपना नसीब समझती हूॅं मैं।
तेरी तलाश में लगी हूॅं मैं,
तू क्यों मुझसे ख़फ़ा है।
तुझे समझने की कोशिश कर रही हूॅं मैं,
तू भी मुझे समझ ले।
तेरी तलाश में ना दिन का ख़याल है ना रात का पता है,
दिल में बस तुझे पाने का जुनून है।
बहुत भ्रम में डाल दिया तूने मुझे,
तू ना तो हमें तुझे समझने दे रहा है
ना ही हमें समझ रहा है।
तेरी तलाश में खुद को भूल गई हूॅं मैं,
क्योंकि खुद से ज्यादा तुझे चाहती हूॅं मैं।
तू क्यों नहीं समझता कि
कोई है ऐसा तेरा अपना,
जो खुद से ज्यादा चाहता है तुझे।
तेरी तलाश में ख़त्म होती जा रही हूॅं मैं,
अब तो संभल जा।
कहीं पछताना ना पड़ जाए तुझे,
कहीं फिर मेरी तलाश में
खोना ना पड़ जाए तुझे।
<रीना कुमारी प्रजापत>