जीवन की पगडंडी
कभी गर्म कभी ठंडी।
कभी सीधी सीधी
तो कभी टेंढी मेंढी खंडी।
कभी साफ़ सुथरी
तो कभी सूखे पेड़ सी डंडी।
कभी ऊंची
कभी गहरी
कभी छांव तो
कभी जलती धूप सुनहरी।
कभी बुलातीं।
कभी डरातीं
कभी जलती
कभी जल सी।
कभी उर्वर
तो कभी बंजर
कभी प्यारी तो
कभी खंजर।
कभी सुहानी
तो कभी डरावनी सी मंज़र।
कभी सुखी नाली सी
तो कभी सागर सी भरी भरी।
कभी चलती तो कभी लगती
ठहरी ठहरी।
हैं ये जीवन की पगडंडी
कुछ बुझी सी तो कुछ
अनबुझीं सी लगतीं।
दफ़न हैं राज़ कईं इनमें गहरीं
हैं ये जीवन की पगडंडी
कभी गर्म गर्म तो कभी ठंडी
हैं ये जीवन की पगडंडी..
हैं ये जीवन की पगडंडी...