"ग़ज़ल"
इस बात के गवाह हैं ख़ुद ये ज़माने वाले!
मिट गए दुनिया से हम को मिटाने वाले!!
अपनी ताक़त पे क्यूॅं इतराते हैं ज़ुल्म ढाने वाले!
मारने वालों से बड़े होते हैं बचाने वाले!!
देश से ग़ुर्बत को मिटाने का दावा करते हैं!
ग़रीबों से रोटियाॅं तक छीन कर खाने वाले!!
वो क्या प्यास बुझाएंगे प्यासों का भला!
लहू तक मुफ़्लिसों का निचोड़ कर पी जाने वाले!!
अपने वक़ार अपनी अना को बेच खाते हैं!
ग़ैरों के क़दमों पे अपने सर को झुकाने वाले!!
कोई भी मज़हब हो तशद्दुद का तरफ़दार नहीं!
धर्महीन हैं बे-गुनाहों का ख़ून बहाने वाले!!
ये दुनिया तुम्हारी निगाहों पे न तनक़ीद करे!
सोच लो अपनी ऑंखों में मुझ को बसाने वाले!!
मुझ से लिपट कर 'परवेज़' उन का रोना ज़ार-ज़ार!
नरगिसी ऑंखों से फिर आज वो मोती हैं लुटाने वाले!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







