तेरी बदमाशी का सूरज चाहे जितना मर्जी बुलंदीं पर चमके।
हमारी हदों में गर चमका तो यह आफताब डूब जाएगा।।1।।
मत जाना मेरी खामोश शख्शियत पर कोई ना मुझको पढ़ पाया।
मैं समंदर हूँ आग का अगर पास आया तो जल जायेगा।।2।।
तू नुमाइशें कर चाहे जितनी अपनी सरहदों के अंदर।
हमारीं जदो में गर किया तो ढेर राख का बन जाएगा।।3।।
हँसी तेरे चेहरे की संभाल कर रख अच्छी लगती है।
मैं शैलाब हूँ दुखों का सामने हँसा तो गमों से भर जाएगा।।4।।
चुपचाप खुशी से चला तू निज़ाम अपने शहर का।
तूने दिमाग गर चलाया तो मेरी नज़रों में चढ़ जाएगा।।5।।
खुदा ने बक्शा है अगर तुझको कोई भी मर्तबा ज़िन्दगी में।
इसको ला आवाम के काम वरना ये तो कुफ्र बन जायेगा।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ