तुमसे हीं तो माँ अस्तित्व है हमारा
याद है कैसे अपने अरमानों को
तिलांजलि दे कर हमें था संवारा
जिस रोज़ तुम्हारे साँसों की
लड़ियांँ टूट रही थी
तुम हम सबसे जुदा हो रही थी
तब सबने कहा था छूट गया है
हमारे हाथों से दामन तुम्हारा
मगर मैंने न तब माना था
न अब है मुझे गंँवारा
क्यूंँकि जिधर देखती हूंँ
तुम हीं तुम नज़र आती हो
ज़र्रे-ज़र्रे में एहसास होता है तुम्हारा
हांँ सिर्फ़ फ़र्क इतना हुआ है कि
अब बदल गया है स्वरुप तुम्हारा