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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

तुमसे हीं तो माँ

तुमसे हीं तो माँ अस्तित्व है हमारा
याद है कैसे अपने अरमानों को
तिलांजलि दे कर हमें था संवारा
जिस रोज़ तुम्हारे साँसों की
लड़ियांँ टूट रही थी
तुम हम सबसे जुदा हो रही थी
तब सबने कहा था छूट गया है
हमारे हाथों से दामन तुम्हारा
मगर मैंने न तब माना था
न अब है मुझे गंँवारा
क्यूंँकि जिधर देखती हूंँ
तुम हीं तुम नज़र आती हो
ज़र्रे-ज़र्रे में एहसास होता है तुम्हारा
हांँ सिर्फ़ फ़र्क इतना हुआ है कि
अब बदल गया है स्वरुप तुम्हारा




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (7)

+

Lekhram Yadav said

बहुत सुन्दर रचना, आपको सादर नमस्कार

रीना कुमारी प्रजापत said

बहुत सुंदर रचना 👌

Supriya sahu said

बहुत खूबसूरत एवं लाज़वाब रचना मैम 👌👌, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

श्रेयसी said

बहुत-बहुत आभार आपलोगों का 🙏🙏

Shiv Charan Dass said

बिल्कुल माँ की ममता का साया हमेशा साथ रहता है

वन्दना सूद said

आपके शब्दों से दिल भर गया 👌👌सुंदर रचना माँ की जगह तो कोई ले ही नहीं सकता पर भाई बहन और बच्चों में उन्हीं का स्वरूप झलकता है किसी की आँखें ,तो किसी की बातें

श्रेयसी said

बहुत-बहुत आभार शिव चरण जी वंदना जी बिल्कुल सही कहा आपने 🙏🙏

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